Tuesday, May 17, 2011

प्लास्टिक की बोतल

मैं हमेशा सा रहा हूँ उसके लिए,
एक प्लास्टिक की बोतल को तरह,
जिसमे अगर पानी भरा हुआ हो,
और साथ में सील बंद मुहर हो,
तो मुझे झट से खरीद लेती थी,
और अपने सीने से लगा कर,
दोनों हाथों में समेट चलती ,
और ज्यों ज्यों पानी घटता,
मेरे प्रति उसका लगाव भी,
कम होता जाता धीरे धीरे,
और बोतल में बची आखिरी बूंद
उसकी दिलचस्पी को शून्य कर देती,
और वो उस बूँद के रसावादन को,
कर देती एक दम नज़रंदाज़ ऐसे,
जैसे कभी उस प्लास्टिक की बोतल से,
उसका कोई मोह या सरोकार ही न हो,
और झट से उसके वोही हाथ,
एकाएक अचानक फेंक देते उसे,
कही बिना देखी राह पर बेदर्दी से ,
कोई भाव या पीड़ा का अहसास भी,
कभी भी नहीं आया उसके चेहरे पर,
बस सिर्फ एक ही भाव रहा हमेशा,
उसके उस चेहरे पर जो झलकता था,
उस प्लास्टिक की बोतल को फेंकते वक्त,
मुक्त होने का भाव तनिक हर्ष से युक्त,
और पीछे मुड़कर भी नहीं देखा उसने,
कभी उस प्लास्टिक की बोतल को ,
जो कुचली जाती , आने जाने वाले,
कई क़दमों से और पहियों के तले,
कई कई बार और लगातार, हर बार,
और मैं यही सोचता कुचलते वक्त,
अब शायद उसे मेरी जरुरत नहीं रही ....
----------मन-वकील

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