Friday, November 4, 2011

पाखंडी चड़त रहीं अब सिंहासन,भलो जावत रहे जेल

महाज्ञानी महापंडित सबै देखे, हम जल भरते ऐसे,
भाग्य सो बड़ो नाही कोई,पछाड़ दियो जो सबहु जैसे,
जो होए सबल तो मिल जाए,माटी भीतर भी सोना,
जो होए धूमिल तो हाथ कमायो भी सबहु हो खोना,
अंधे जैसो दिखत नहीं कबहू, राह पड़ी वो सबरी मुहरे,
भाग्य बदा मिलतो सबहु चाहे कछु जतन कोऊ जुहरे,
कागा खाता रहे पकवान, हंस चलत बस भूख बिधान,
कूकर चाटे रस मलाई, और गैय्या सांगे कूड़े बहुबान,
देख मन-वकील एहो भाग्य की जस तस भाँती-२ खेल,
पाखंडी चड़त रहीं अब सिंहासन,भलो जावत रहे जेल ....
==मन-वकील

Tuesday, November 1, 2011

इंसान हर एक दुसरे को सिखाता है

कौन किसको कहाँ और कब सिखाता है मेरे दोस्त,
ये तो वक्त है जो यहाँ हर चोट लगाता है मेरे दोस्त,
गर गर्दिशों की आंधियां सिखाये पत्थर सा बनाना,
बादलों का सैलाब मन का नम बनाता है मेरे दोस्त,
रोक ना कभी इस इन्तज़ाम-इ-कुदरत के सबक को,
यहाँ इंसान हर एक दुसरे को सिखाता है मेरे दोस्त ...
==मन-वकील

Sunday, October 30, 2011

आँखों की देखी

आँखों की देखी, कुछ मैंने ऐसी देखी,
चाहे रही वो कुछ अटपटी अनदेखी,
पर सिखा गई मुझे वो सब मन देखी,
चित्रपट सी घटित हुई जो हमने देखी,
दुर्भाग्य थी या आकस्मिक जो देखी,
अपनों संग विश्वास, भली भाँती देखी,
कड़वे नीम सी बीती जो औरों ने देखी,
इच्छा अनिच्छा के दौर में घूमे देखी,
मन की परतों पर चढ़ी धूल भी देखी,
कभी आँखों से बरसती वर्षा सी देखी,
कभी मन में रिसती नदी बनती देखी,
पीड़ा के उदगम में कही सिमटती देखी,
कभी नन्ही बेटी सी मुस्कराती भी देखी,
बहुत देखी अज़ब गज़ब सी होती यूँ देखी,
हाथों से रेत सी फिसलती जिन्दगी देखी ....
====मन-वकील