tag:blogger.com,1999:blog-7261919051003642422024-02-08T15:35:31.813+05:30Baal Majdur!!!This Blog is dedicated to all the Child Labor's of India..We are trying to remove the Child Labor System from India and build a healthy Indian future!!!
A Thought:We spend almost 1000 Rupees per month on our unneeded Luxury items (cigarettes,perfumes,deodorants,hair cuts etc) but can't we spare only 600 rupees per month to educate a child???..Just think once and visit the website http://www.worldvision.in/ to contribute now!!Vivek Goelhttp://www.blogger.com/profile/13677348685852176478noreply@blogger.comBlogger112125tag:blogger.com,1999:blog-726191905100364242.post-25566406010071112142012-10-26T19:52:00.001+05:302012-10-26T19:52:13.905+05:30क्यों मर गया अब मेरा देश??<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<b><span style="font-size: small;"><i><span style="color: maroon;">जाकर समन्दर के किनारों से कह दो,<br />
गिरते झरनों के सफ़ेद धारों से कह दो,<br />
कह दो जाकर बहती नदियों के जल से,<br />
जोर से कहो जाकर हवा की हलचल से,<br />
ऊँचे पहाड़ों में जाकर कर दो तुम ऐलान,<br />
जरा चीखों ऐसे, जो सुन ले बहरे मकान,<br />
कुदरत के हर जर्रे में फैलाओ यह खबर,<br />
अब इस मुल्क में बेईमान हुआ हर बशर,<br />
खजानों में करे क्योकर हम अब पहरेदारी,<br />
लूटमारी करती फिरे अब सरकार हमारी,<br />
बाशिंदों के मुहँ पर जड़े अब सख्त से ताले,<br />
गरीबी रहे हर जगह रोती,छीन गये निवाले,<br />
बेरोज़गारी पर अब चढ़े जाए रंग सिफारिश,<br />
अब कहाँ बरसती है मेरे खेतों पर वो बारिश,<br />
मैं गर खोलता जुबाँ, तो बनते पुलिसिया केस,<br />
मैं बैठा रोता हूँ, क्यों मर गया अब मेरा देश ..........<br />
==मन वकील</span></i></span></b></div>
Vivek Goelhttp://www.blogger.com/profile/13677348685852176478noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-726191905100364242.post-90118412076979183192012-10-26T19:50:00.002+05:302012-10-26T19:50:37.664+05:30मेरा गाँव!<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<b><span style="font-size: small;"><span style="color: darkslategrey;">धरातल से ऊपर मेरे पाँव है,<br />
कहीं छुप गया वो मेरा गाँव है,<br />
कभी बादलों से घिरा रहता था,<br />
कभी हवाओं का जोर सहता था,<br />
पेड़ों की डालियों पर थे पत्ते हरे,<br />
खेत थे खलियान भी थे सब भरे,<br />
लोगों की महफ़िल थी शोर था,<br />
खुश थे सब ना कोई कमज़ोर था,<br />
वजह थी वहीँ न बेवजह था कोई,<br />
रातें थी चांदनी पर,रहती वो सोई,<br />
कहाँ सब जा बसे अब कहाँ गाँव है<br />
कहीं छुप गया वो मेरा गाँव है,<br />
राह थी चलती, जो लोग चलते,<br />
वहीँ जानवर दोस्तों से थे पलते,<br />
सब नज़दीक था मंदिर भी वहीँ,<br />
पाठशाला की घंटी से हिलती जमीं,<br />
बच्चे थे संग थे खेल कंचे और हाकी,<br />
सभी एक से एक, ना कमी थी बाकी,<br />
बस एक दिन कोई धुंआ आ गया,<br />
मेरे गाँव के सब खेत ही वो खा गया,<br />
अब बस दौड़ते है मजबूरी के पाँव<br />
कहीं गुम हो गया वो मेरा गाँव,<br />
==मन-वकील<br />
</span></span></b></div>
Vivek Goelhttp://www.blogger.com/profile/13677348685852176478noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-726191905100364242.post-54244086127972312762012-10-26T19:48:00.003+05:302012-10-26T19:48:55.445+05:30कितने रावण ?<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<b><span style="font-size: medium;"><span style="color: indigo;"><b>कितने रावण मारोगे अब तुम राम?<br />
हर वर्ष खड़े हो जाते शीश उठाकर,<br />
यहाँ वहाँ, हर स्थान पर पुनः पुनः,<br />
कभी रूप धरते वो भ्रष्टाचार बनकर<br />
कभी अत्याचार किसी निरीह पर,<br />
कहीं बिलखते बच्चे की भूख बनकर,<br />
अक्सर महंगाई का विकराल रूप धर,<br />
कहीं धर्मांध आतंक के चोला पहनकर,<br />
कभी किसी महिला के कातिल बनकर,<br />
कभी कसाब तो कभी दौउद बन बनकर<br />
कभी मिलते राहों में कोई नेता बनकर,<br />
अब नहीं दशानन वो है वो शतकानन,<br />
मिलते है वो बनकर अब तो सह्स्त्रानन,<br />
बस कलियुग में ही होते ऐसे अधर्मी काम,<br />
कितने रावण मारोगे अब तुम राम?<br />
==मन वकील </b></span></span></b></div>
Vivek Goelhttp://www.blogger.com/profile/13677348685852176478noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-726191905100364242.post-62781345080478751082012-09-08T21:43:00.002+05:302012-09-08T21:43:27.146+05:30"खोया हुआ नसीब"<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<b><span style="font-size: small;">"खोया हुआ नसीब"<br />
बुढ़िया की मोतियाबिंद से सजी आँखों में,<br />
कम दिखाई देती परछाइयों को समेटे हुए,<br />
जिन्हें कल संजोये थी अपनी खोख में वो,<br />
जिन्हें खिलाती रही थी अपना भी निवाला,<br />
वो आज कहाँ जा बसे,अब क्यों नहीं करीब,<br />
धुंधली धुंधली लकीरों सा,खोया हुआ नसीब,<br />
कूड़े के ढेर पर बैठे कुक्कर के संग वो नन्हे,<br />
नन्हे हाथों से बीनते थे कागज़ के चीथड़े वो,<br />
वो चंद चीथड़े भी आज है उनके तन पर भी,<br />
चेहरे पर छपी मासूमियत भी होती ओझल,<br />
शक्ल पर अब बेबसी है जो आ बैठी करीब,<br />
बदबू से लिपटे मासूमो का, खोया हुआ नसीब,<br />
कभी भागती रहती यहाँ से वहां हो बदहवास,<br />
कभी चंद लिखे मुड़े से वो कागज़ मुठ्ठी में,<br />
कभी आँखों में उभर आती बेबसी बन भूख,<br />
जो छोड़ चला गया ऐसे, घेरती अब उसे धूप,<br />
बड़े बाबू की वो भूखी नज़रें,क्यों लगती करीब,<br />
क्यों जिन्दा है वो सोचती, खोया हुआ नसीब ...<br />
==मन वकील<br />
</span></b></div>
Vivek Goelhttp://www.blogger.com/profile/13677348685852176478noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-726191905100364242.post-15223421557621165882012-07-15T21:31:00.002+05:302012-07-15T21:31:41.997+05:30बोल बम!<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<b><span style="font-size: small;"><span style="color: mediumblue;">पहन गेरुए वस्त्र, चला जोगी गंगाजी की ओर,<br />
हाथ में थामे कावंड, चाह नहीं अब कुछ और,<br />
मन सुमरे शिव नाम,होए रहा "बोल बम" शोर,<br />
थिरके पग राह पर,जो नाचे मयूर सह घनघोर,<br />
अरे, शिव की ऐसी मन में लौ है उसने जगाई,<br />
भूला सुध बुध, पड़े नीलकंठ की राह दिखाई,<br />
जोर जोर से वो भागे,अपने घर को पीछे छोड़ <br />
पहन गेरुए वस्त्र, चला जोगी गंगाजी की ओर,<br />
सावन लाये संग अपने वो कैसी पावन बेला,<br />
शिव बसे मन, चले जोगी पथ पर ना अकेला,<br />
कावंडमय हुआ नगर,चले शिव भक्तों का जोर,<br />
पहन गेरुए वस्त्र, चला जोगी गंगाजी की ओर,<br />
जन देख रहे अचरज में, कैसी शिव की भक्ति,<br />
पग में चाहे पड़े छाले, पर मन में घटे ना शक्ति,<br />
अरे, कैसी दुविधा,चले ना कोई पीड़ा का जोर,<br />
पहन गेरुए वस्त्र, चला जोगी गंगाजी की ओर,<br />
मन में धरे जोगी अपने, केवल एको बिचार,<br />
शिव मेरे त्रिलोकपति, आन करेंगे मेरा उद्धार,<br />
गंगाजल डाल शिवलिंग पर,थमा दूँ मन की डोर,<br />
पहन गेरुए वस्त्र, चला जोगी गंगाजी की ओर,<br />
मन सुमरे शिव नाम,होए रहा "बोल बम" शोर,<br />
थिरके पग राह पर,जो नाचे मयूर सह घनघोर,<br />
==मन वकील </span></span></b></div>Vivek Goelhttp://www.blogger.com/profile/13677348685852176478noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-726191905100364242.post-16420257872802288932012-06-17T20:30:00.002+05:302012-06-17T20:30:38.752+05:30होड़<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<b><span style="font-size: small;"><span style="color: firebrick;">आज चोरों डकैतों में अपना सिरमौर,<br />
चुनने के लिए जबरदस्त होड़ पड़ी है,<br />
तभी संसद के कैंटीन वाला कहता है,<br />
आजकल संसद में बेसिज़न भीड़ बढ़ी है,<br />
जो बनाए रहते थे कभी अपने अपने दल,<br />
अपने मुद्दे की आड़ में करते थे हलचल, <br />
कल तक जो बकते इक दूजे को गालियाँ,<br />
अब गलबहियां डाल पीटते वो तालियाँ,<br />
उन दलबदलुओं में जुड़ने की चाह बढ़ी है,<br />
आज चोरों डकैतों में अपना सिरमौर,<br />
चुनने के लिए जबरदस्त होड़ पड़ी है,<br />
सब के सब चाहते बस इक रबड़ की मोहर,<br />
जो बस अंगूठा टेकें, बने ना उनका शौहर,<br />
जो उनके भेजे विधेयकों पर उठाए ना सवाल,<br />
कौन कहाँ गवर्नर बने, रखें ना इसका ख्याल,<br />
बस ऐसे एक जमुरें को जमुरियत सौपने की पड़ी है,<br />
आज चोरों डकैतों में अपना सिरमौर,<br />
चुनने के लिए जबरदस्त होड़ पड़ी है,<br />
==मन वकील </span></span></b></div>Vivek Goelhttp://www.blogger.com/profile/13677348685852176478noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-726191905100364242.post-38570887000261489462012-06-12T22:37:00.002+05:302012-06-12T22:37:18.917+05:30जेंटल मेन<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<b><span style="font-size: small;"><span style="color: darkgreen;">वो है क्रिकेट का भी असली जेंटल मेन,<br />
सौम्य सरल पारंगत,जो कहते सब फैन,<br />
नित नए रिकार्ड रचे लगाये नित शतक,<br />
हर गेंद को सहज ही खेले,पारी होने तक,<br />
यदि आउट होय, तो भी रहता वो शांत,<br />
प्रशंसा करते सब, कपिल हो या श्रीकांत,<br />
ब्रेडमैन से करते,देसी बिदेसी उसका मेल,<br />
अलग शान से, अलग ढंग से खेले वो खेल,<br />
तभी राजनीतिज्ञों ने बुला उसका पूछा हाल,<br />
राज्यसभा में नामित कर,फेंका मायाजाल,<br />
करने सुशोभित उसकी विधा,भेजा शाहीपत<br />
आओ प्यारे संग बैठो हमारे,लेकर एक शपथ <br />
झटपट ही कर डाला,संसद में उसका टीका,<br />
अखबारों में जोरदार छपा,पर लगता था फीका,<br />
फिर किया सरकार ने, उस प्यारे पर अहसान,<br />
युवराज़ के पास बंगला अलोटकर,बढाई शान,<br />
पर वो प्यारा था सचमुच सच्चा सहज सरल,<br />
झट मना किया,रहने को वो बंगला अविरल,<br />
राज्यसभा में आया अब,इक असल जेंटलमेन,<br />
जो सत्ता के भूखों से अलग चल, करें उन्हें बैचैन ...........<br />
=========मन वकील </span></span></b></div>Vivek Goelhttp://www.blogger.com/profile/13677348685852176478noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-726191905100364242.post-5930487437628937042012-05-11T00:32:00.001+05:302012-05-11T00:33:01.151+05:30क्यों मार दिया मुझे बापू?<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<b><span style="font-size: small;">जब माँ की कोख में मार दिया था मुझे,<br />
तब क्यों नहीं भर आया था दिल, बापू<br />
आज पड़ोस की बिट्टो को डाक्टर,<br />
बनते देख,क्यों फूट फूट रोते हो बापू,<br />
शर्मा जी के आँगन में फैली हुई, वो,<br />
राखी पर खुशियों की सतरंगी चादर,<br />
भाइयों के हाथो पर बंधते पवित्र धागे,<br />
अब क्यों सांप लोट रहा छाती पर, बापू,<br />
जब माँ की कोख में मार दिया था मुझे,<br />
तब क्यों नहीं भर आया था दिल, बापू,<br />
रहमान चाचा को जाते देख,बेटी संग,<br />
अपनी साइकिल पर बैठकर, स्कूल को,<br />
बहुत हसरतों से आँखों में नमी लाते, बापू,<br />
जब माँ की कोख में मार दिया था मुझे,<br />
तब क्यों नहीं भर आया था दिल, बापू,<br />
गुप्ता जी की बेटी की बिधाई के मौके पर,<br />
माँ को थाम कर बहुत रोते रहे,झरने से,<br />
और कहते रहे, अगर आज मैं होती, तो,<br />
जब माँ की कोख में मार दिया था मुझे,<br />
तब क्यों नहीं भर आया था दिल, बापू,<br />
जब भैया ने पकड़ तुम्हारा वो हाथ, ऐसे,<br />
मरोड़ दिया था, तुम्हारे बाप होने का गरूर,<br />
तब आसमान की ओर मुहं करके, बहुत रोये<br />
जब माँ की कोख में मार दिया था मुझे,<br />
तब क्यों नहीं भर आया था दिल, बापू<br />
अब जब तक रहोगे, इस धरती पर, <br />
रहोगे सदा कोसते खुद को, दिन भर<br />
संग में रुलाओगे माँ को भी, मुझे याद कर,<br />
जब माँ की कोख में मार दिया था मुझे,<br />
तब क्यों नहीं भर आया था दिल, बापू<br />
=मन- वकील </span></b></div>Vivek Goelhttp://www.blogger.com/profile/13677348685852176478noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-726191905100364242.post-4995557234654601932012-04-14T22:59:00.002+05:302012-04-14T22:59:47.818+05:30देश मेरा है बेसहारा!<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><b><span style="font-size: small;"><span style="color: mediumblue;">सभी आसरे से दूर आज मेरा देश है बेसहारा<br />
अब भ्रष्टाचारियों ने इसे कालिख से है संवारा<br />
राहगीरों को लुटने वाले डाकू कहाँ हो गए गुम,<br />
सांसद बन अब उन्हें सड़कों पे लूटना नहीं गंवारा,<br />
जनता के पैसे से अब वो जनता को ही रौन्धतें,<br />
देश को अब कौन कृष्ण आकर देगा सहारा,<br />
शोर मत करों अब यहाँ नहीं होगी कोई क्रांति,<br />
अब तो मौनव्रत करने पे लगती है १४४ की धारा,<br />
सभी आसरे से दूर आज मेरा देश है बेसहारा<br />
अब भ्रष्टाचारियों ने इसे कालिख से है संवारा<br />
खेल संगठनों के पदों पर काबिज़ है बेशर्म बेखिलाड़ी,<br />
कौन बनेगा यहाँ मिल्खा या ध्यानचंद दुबारा,<br />
गुब्बारों के नाम पर उड़ा देते है जनता का धन,<br />
बेशर्म ये बाबू घुमने चले जाते है लन्दन या बुखारा,<br />
विकास शब्द अब रह गया है इक नारा बनकर, <br />
ज्ञान और शिक्षा को अब आरक्षण ने है मारा<br />
सभी आसरे से दूर आज मेरा देश है बेसहारा<br />
अब भ्रष्टाचारियों ने इसे कालिख से है संवारा,<br />
बांटकर खाते है धर्मं और जातियों में हमें, ये नेता,<br />
चरित्र व् राज धर्म से नहीं होता अब इनका गुज़ारा ,<br />
वोट की अब कीमत झुग्गियों में अब खूब है बंटती,<br />
दारु हो या कम्बल, बटन दबवाते है कई-२ हजारा,<br />
बहु बेटियों के नाम पर बंटती है खूब वजीफों के रकम,<br />
राह चलते उन्हें लुटते, संग पुलिस लेती है चटखारा,<br />
सभी आसरे से दूर आज मेरा देश है बेसहारा<br />
अब भ्रष्टाचारियों ने इसे कालिख से है संवारा ...<br />
==मन वकील </span></span></b></div>Vivek Goelhttp://www.blogger.com/profile/13677348685852176478noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-726191905100364242.post-7970082781695780852012-04-08T22:49:00.000+05:302012-04-08T22:49:14.481+05:30अब तक!<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><h6 class="uiStreamMessage" data-ft="{"type":1}" style="color: red;"><span style="font-size: small;"><span class="messageBody" data-ft="{"type":3}">ठहराव का इक ठिकाना, मेरे भीतर नहीं है आज तक,<br />
मैं किश्तियों को खेता रहा, अपनी हसरतों की आज तक,<br />
सिलसिलें जो थे ग़मों के,वो सिलसिलेवार रहे आते जाते,<br />
मैं मायूसियों में अपनी खुशियाँ टटोलता रहा बस आज तक,<br />
कहने को वो थे अपने,पर दुश्मनी रहे हमसे युहीं निभाते,<br />
<span class="text_exposed_show"> खोने के डर से उनको, बस माफ़ करता रहा मैं अब तक,<br />
ये सितम क्या कम थे, जो हमेशा रहे हम कमतर बनके,<br />
मैं क्या उड़ता हवा में, बस पैरों तले जमीं न मिली अब तक<br />
ठहराव का इक ठिकाना, मेरे भीतर नहीं है आज तक,<br />
मैं किश्तियों को खेता रहा, अपनी हसरतों की आज तक,<br />
=मन वकील</span></span></span></h6></div>Vivek Goelhttp://www.blogger.com/profile/13677348685852176478noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-726191905100364242.post-35972768374801802032012-04-08T22:42:00.001+05:302012-04-08T22:42:55.951+05:30जिन्दगी को ढूंढे यहाँ वहां!<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><h6 class="uiStreamMessage" data-ft="{"type":1}" style="color: red;"><span class="messageBody" data-ft="{"type":3}" style="font-size: small;">इक फलसफ़ा सी है जिन्दगी, कोई पढ़ी अनपढ़ी किताब सी,<br />
कभी कुछ जोड़ जाती, कभी घाटे में जाते कोई हिसाब जैसी,<br />
जब कोई तन्हाइयों में अपनी जिन्दगी किया करे फनाह,<br />
उथल पुथल सी मचाकर, बस मुसीबतें दिया करें बेपनाह,<br />
कभी हाथों से सरक कर,रास्तों में आ बैठे रूठकर यूँ मुझसे ,<br />
<span class="text_exposed_show"> कभी हवाओं में उढने को होती, बस कुछ चिढकर यूँ मुझसे,<br />
कहीं ख्वाबों को तलाशती फिरती, उम्मीदों के सिर पे चढ़कर<br />
कभी सब्र की चादर ओढ़कर, पडी रहती आँखों में आंसू भरकर<br />
कभी धुएं सी फ़ैल जाती, कभी घुटती कभी बस ये मचलती,<br />
कभी पानी का एक झरना बन, घनघोर सी नीचे को फिसलती,<br />
कभी बेसब्र सा इक बच्चा, खिलौनों की आस लगाए बस रहती,<br />
कभी बोलती रहे बेसाख्ता,कभी गूंगी से चुपी लगाए बस रहती,<br />
कहीं टटोलती है कुछ पत्थर, जो बेजान करते इसकी किस्मत,<br />
कभी लुटेरों की बन ये लूटे, कभी लेकर फिरती अपनी लुटी अस्मत<br />
अन्जान सा बनकर, मन वकील बस जिन्दगी को ढूंढे यहाँ वहां,<br />
ये जिन्दगी है एक तितली, टिकती ये बस एक जगह कब कहाँ ?<br />
==मन-वकील</span></span></h6></div>Vivek Goelhttp://www.blogger.com/profile/13677348685852176478noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-726191905100364242.post-18477400523625000342012-04-03T23:45:00.002+05:302012-04-03T23:45:31.821+05:30जिन्दगी<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><b><span style="font-size: small;">इक फलसफ़ा सी है जिन्दगी, कोई पढ़ी अनपढ़ी किताब सी,<br />
कभी कुछ जोड़ जाती, कभी घाटे में जाते कोई हिसाब जैसी,<br />
जब कोई तन्हाइयों में अपनी जिन्दगी किया करे फनाह,<br />
उथल पुथल सी मचाकर, बस मुसीबतें दिया करें बेपनाह,<br />
कभी हाथों से सरक कर,रास्तों में आ बैठे रूठकर यूँ मुझसे ,<br />
कभी हवाओं में उढने को होती, बस कुछ चिढकर यूँ मुझसे,<br />
कहीं ख्वाबों को तलाशती फिरती, उम्मीदों के सिर पे चढ़कर<br />
कभी सब्र की चादर ओढ़कर, पडी रहती आँखों में आंसू भरकर<br />
कभी धुएं सी फ़ैल जाती, कभी घुटती कभी बस ये मचलती,<br />
कभी पानी का एक झरना बन, घनघोर सी नीचे को फिसलती,<br />
कभी बेसब्र सा इक बच्चा, खिलौनों की आस लगाए बस रहती,<br />
कभी बोलती रहे बेसाख्ता,कभी गूंगी से चुपी लगाए बस रहती,<br />
कहीं टटोलती है कुछ पत्थर, जो बेजान करते इसकी किस्मत,<br />
कभी लुटेरों की बन ये लूटे, कभी लेकर फिरती अपनी लुटी अस्मत<br />
अन्जान सा बनकर, मन वकील बस जिन्दगी को ढूंढे यहाँ वहां,<br />
ये जिन्दगी है एक तितली, टिकती ये बस एक जगह कब कहाँ ?<br />
==मन-वकील </span></b></div>Vivek Goelhttp://www.blogger.com/profile/13677348685852176478noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-726191905100364242.post-86165466780609708952012-04-03T23:44:00.000+05:302012-04-03T23:44:06.990+05:30हसरतें<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><b><span style="font-size: small;"><span style="color: mediumblue;">ठहराव का इक ठिकाना, मेरे भीतर नहीं है आज तक,<br />
मैं किश्तियों को खेता रहा, अपनी हसरतों की आज तक,<br />
सिलसिलें जो थे ग़मों के,वो सिलसिलेवार रहे आते जाते,<br />
मैं मायूसियों में अपनी खुशियाँ टटोलता रहा बस आज तक,<br />
कहने को वो थे अपने,पर दुश्मनी रहे हमसे युहीं निभाते,<br />
खोने के डर से उनको, बस माफ़ करता रहा मैं अब तक,<br />
ये सितम क्या कम थे, जो हमेशा रहे हम कमतर बनके,<br />
मैं क्या उड़ता हवा में, बस पैरों तले जमीं न मिली अब तक<br />
ठहराव का इक ठिकाना, मेरे भीतर नहीं है आज तक,<br />
मैं किश्तियों को खेता रहा, अपनी हसरतों की आज तक,</span></span></b></div>Vivek Goelhttp://www.blogger.com/profile/13677348685852176478noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-726191905100364242.post-53613107384710210202012-03-25T14:20:00.002+05:302012-03-25T14:20:25.034+05:30गुमनाम शहीद!<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><b><span style="font-size: small;"><span style="color: firebrick;">लो अब बाँध दिए है मेरे दोनों हाथ,<br />
और रस्सी का कसाव मेरे जोड़ो पर,<br />
शायद साम्राज्यवाद कसना चाहते वो,<br />
जो धीरे धीरे खोखला हो गया है अब ,<br />
मेरे दोनों बाजूं पकड़ कर ले चले,<br />
वो मेरे हम-वतन भाई उस ओर ऐसे,<br />
जैसे नमक हलाली का सारा फर्ज़ ही,<br />
चुकाना चाहते हो वो उन फिरंगियों का,<br />
मैं भी तेज़ तेज़ क़दमों से डग भरता,<br />
इस रोज़ रोज़ के मरने से चाहता मुक्ति,<br />
शायद नए विद्रोह की आहट सुनाई देती,<br />
या पुरानी बगावत अब फिर से जवाँ होती,<br />
कहीं खामोशियों का सिलसिला टूटता हुआ,<br />
और शोर का सैलाब है बस अब आने को,<br />
सुबह सूरज से पहले, लेने आ गयी है ,<br />
संग अपने लेने मुझे शहादत की परी,<br />
जो मेरी रूह को चूम, ले जायेगी मुझे,<br />
पर मेरे जाने से, भर जायेगी फिर से,<br />
उस लहू में एक नयी तपिश सरगर्मी,<br />
जोश उभरेगा और ले डूबेगा अपने साथ,<br />
इन फिरंगियों के जलालत -ऐ-जुल्म,<br />
और लूटेरगर्दी की वो गन्दी फितरत ,<br />
बस सोच है जो अब समेट रही मुझे,<br />
खौफ से दूर, मैं नयी दुनिया की ओर,<br />
अपने कदम बढाता हुआ बस ऐसे ऐसे,<br />
उन हाथों ने मुझे लाकर खड़ा कर दिया,<br />
उस सर्द लकड़ी के तख्ते पर, नंगे पाँव<br />
पर मेरे जोश की तपिश, सुलगा देगी,<br />
इस निरीह लकड़ी में भी एक चिंगारी,<br />
जो जलाकर खाक कर देगी शायद अभी,<br />
इन फिरंगियों की बेसाख्ता हकुमत को,<br />
तभी दो कांपते हाथ मेरे ही हमवतन के,<br />
ढँक देते मेरे चेहरे को शहादत के कफ़न से,<br />
जो कालिख समेटे हुए एक रोशनी देता हुआ,<br />
रूह को मेरी, उस अनजानी डगर की राह पर,<br />
अचानक गले में लिपट जाता मेरा नसीब ,<br />
सख्त पटसन के नर्म रेशों से सहलाता हुआ,<br />
और फिर कसाव और कसाव और कसाव ,<br />
मैं पहले अँधेरे दर से गुजरता हुआ एकाएक,<br />
आ मिलता उस शहादत की सफ़ेद डगर पर,<br />
पीछे छोड़ गया हूँ अब मैं एक ऐसा इतिहास<br />
जो मेरे मुल्क की आज़ादी की पहचान होगा,<br />
शायद गुमनाम शहीदों में अब मेरा भी नाम होगा //////<br />
==मन वकील </span></span></b></div>Vivek Goelhttp://www.blogger.com/profile/13677348685852176478noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-726191905100364242.post-19671597110004651692012-03-13T22:16:00.002+05:302012-03-13T22:16:57.821+05:30आत्ममंथन !<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><b><span style="font-size: small;"><span style="color: mediumblue;">कभी कभी बस चुपचाप रहना बेहतर समझता हूँ मैं,<br />
कभी कभी बस खुद से ही कहना बेहतर समझता हूँ मैं,<br />
ना जाने किसी बात पर अपने आप ही बेबात न हो जाऊं,<br />
इस डर में बस अक्सर खुद को कमतर समझता हूँ मैं,<br />
कभी रास्ते खोजते है मुझे, कभी मैं उन्हें खोजता रहता,<br />
बस इस खोज की कशमकश में खुद को बदतर समझता हूँ मैं,<br />
कभी कभी बस चुपचाप रहना बेहतर समझता हूँ मैं,<br />
कभी कभी बस खुद से ही कहना बेहतर समझता हूँ मैं,<br />
रोशनी ने कभी भी आकर मेरे दामन को ठीक न पकड़ा,<br />
बस अँधेरे में जीकर उसे अपना हमसफ़र समझता हूँ मैं,<br />
मौसम की हर चोट मैंने आसमां बन खुद पर है झेली ,<br />
अब तो अपने आप को अक्सर इक पत्थर समझता हूँ मैं,<br />
कभी कभी बस चुपचाप रहना बेहतर समझता हूँ मैं,<br />
कभी कभी बस खुद से ही कहना बेहतर समझता हूँ मैं,<br />
मत बैठ मेरे पास कभी, वर्ना तू भी हो जायेगा इक अजाब,<br />
हसरतों को देखेगा शीशे सा टूटते, ऐसा अक्सर समझता हूँ मैं,<br />
मेरे सीने पर अब है उस वक्त की बेरहमियत के कई निशाँ,<br />
अरे अपने आप को मैं, उस खुदा से बेहतर समझता हूँ मैं,<br />
कभी कभी बस चुपचाप रहना बेहतर समझता हूँ मैं,<br />
कभी कभी बस खुद से ही कहना बेहतर समझता हूँ मैं,<br />
===मन-वकील </span></span></b></div>Vivek Goelhttp://www.blogger.com/profile/13677348685852176478noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-726191905100364242.post-23511879011692640152012-03-13T22:15:00.002+05:302012-03-13T22:15:40.350+05:30बदल दो!<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><b><span style="font-size: small;"><span style="color: firebrick;">मौसम की अज़ान बदल दो, हवाओं की भी तान बदल दो,<br />
नहीं बदल सकते औरों को, तो खुद की ही पहचान बदल दो,<br />
सन्नाटों के तीर क्यों हो सहते, गंदे नाले नदियों में क्यों बहते,<br />
कटाक्ष यदि तुम सह ना पाओ, तो सहने की चौपान बदल दो,<br />
नहीं बदल सकते औरों को, तो खुद की ही पहचान बदल दो,<br />
बादल घटा घनघोर छाई है, धुओं में भी अब अग्नि आई है,<br />
नर्म गर्म होकर क्यों रोना अब,खुद जलने के शमशान बदल दो,<br />
नहीं बदल सकते औरों को, तो खुद की ही पहचान बदल दो,<br />
वादों पर क्यों भरोसा अब करना,काहे जीवन में पल पल मरना,<br />
तिल तिल घुट कर तुम क्या पाओगे, ये नित मरने के निशान बदल दो<br />
नहीं बदल सकते औरों को, तो खुद की ही पहचान बदल दो,<br />
बानी में अब नरमी कैसी तुम लाओ, यदि छीन कर जो तुम पाओ,<br />
हाथ फैलाकर क्यों खड़े मांगते हक़, मार्ग में आये सब पाषाण बदल दो,<br />
नहीं बदल सकते औरों को, तो खुद की ही पहचान बदल दो,<br />
=मन-वकील </span></span></b></div>Vivek Goelhttp://www.blogger.com/profile/13677348685852176478noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-726191905100364242.post-51179835520326437332012-03-08T04:27:00.000+05:302012-03-08T04:27:01.811+05:30होली आई रे<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><b><span style="font-size: small;"><span style="color: red;">रंग बरसे चहु ओर, छटा निराली एहो छाई,<br />
कियो दहन होलिका, रंगीली होरी अब आई,<br />
भर पिचकारी रंगों से,दोहु कर अपनों बहुराई<br />
भिगो दियो गौरी, कंचुकी चोली झलक सबुराई,<br />
ठन ठन चपल चलत, मुख गुलाल दे मसराई,<br />
कियो दहन होलिका, रंगीली होरी अब आई,<br />
ढोल बजे सहु नगाड़े,बरसत जल बिन बदराई,<br />
फागुन दियो पछाड़, विसार देब माघ एहो भाई,<br />
नभ तापस लायो, धरा धूरि एहो लाल लभुराई,<br />
कियो दहन होलिका, रंगीली होरी अब आई,<br />
नव प्रेयसी करत, ठिठोरी एहो चहकत सघुराई,<br />
मुख चुम्बन धरत, रपटत आलिंगन मधुमाई,<br />
तन कियो सुगन्धित, काम रति ज्यो मुग्धाई,<br />
कियो दहन होलिका, रंगीली होरी अब आई,<br />
नमन सबहु इहा, जन मानस जग जसराई,<br />
बसे सबरे जीवन, एहो रंग-सुगंध कण कनाई,<br />
दीयो आसीस मन, तिस रहत सबै चित हर्षाई <br />
खेलत बढ़त बट ज्यो, पाबे सम्पदा निध सौराई,<br />
कियो दहन होलिका, रंगीली होरी अब आई, </span></span></b><br />
<br />
<b><span style="font-size: small;"><span style="color: red;">--Man-Vakil </span></span></b></div>Vivek Goelhttp://www.blogger.com/profile/13677348685852176478noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-726191905100364242.post-1428706320620948872012-02-24T04:47:00.002+05:302012-02-24T04:47:54.666+05:30उभर पड़े मन के सब दोष!<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><b><span style="font-size: small;">रगड़ रगड़ पड़ती रही मन पर, उभर उभर पड़े मन के सब दोष,<br />
सिमट सिमट गया मैं जब-तब, विषम बन गया हूँ लेकर सब रोष,<br />
अंतहीन पीड़ा रहने लगी मन में,मृत होने लगा मन का सब जोश,<br />
गहरी छाया थी पड़ी दुखों के, दिखने लगा सब महू बस दोषम दोष,<br />
इसको छीलूं या उसको काटू, अत्याचार करूँ सब पर बन कुभोष,<br />
सिमट सिमट गया मैं जब-तब, विषम बन गया हूँ लेकर सब रोष,<br />
आशा की किरणों ने छोड़ा आना, अन्धकार ने छीना सर्व तेजोजोश,<br />
व्यथित हो उठा अब मैं ज्वलित सा, अग्नि बानी में भरने लगी दोष,<br />
यहाँ वहां बस कुलषित हो फिरता,बाँट रहा दूषित भावों से माह पोष, <br />
सिमट सिमट गया मैं जब-तब, विषम बन गया हूँ लेकर सब रोष,<br />
===मन-वकील </span></b></div>Vivek Goelhttp://www.blogger.com/profile/13677348685852176478noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-726191905100364242.post-92147623470222998902012-02-10T07:47:00.002+05:302012-02-10T07:47:20.657+05:30वक्त की पहचान कर<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><b>रखाकर तू हौंसले अब, सीने में डालकर इरादों का फौलाद,<br />
दौर है कुछ ऐसा अब,जो आँखें दिखाती है अपनी ही औलाद,<br />
वक्त की पहचान कर अब, जेहन को दिमाग से ऐसे जोड़कर,<br />
कौन भौंक देगा खंज़र, तेरी पीठ में ऐसे ये झूठे नाते तोड़कर,<br />
राहें होगी अनेक पर संग होंगें उनपर मुसीबतों के कई पत्थर,<br />
चलना तो होगा युहीं इन्ही राहों पर, चाहे रोकर या फिर हसंकर,<br />
सोच भी बदलेगी,जब देखेगा तू बदलती दुनिया की अजब रंगत,<br />
अकेला बढ़ चलाचल जिन्दगी के काफिले में,न जोड़ कोई संगत,<br />
गैरों ओ अपनों के फर्क में, रहेगी एक महीन सी लकीर यहाँ वहाँ,<br />
ढूंढ़ले बस रोशनी डगर पर,खुशियाँ अब मिलती इस जहाँ में कहाँ,<br />
सफ़र पूरा होते ही निकल, पहन कर ५ गज भर की सफ़ेद चादर,<br />
लोग बस मिटटी में मिला देंगे,मिलता है बाद में मुरझाये फूलों से आदर ....<br />
==मन-वकील<br />
<br />
</b></div>Vivek Goelhttp://www.blogger.com/profile/13677348685852176478noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-726191905100364242.post-89966849069045988182012-01-15T14:04:00.000+05:302012-01-15T14:04:10.010+05:30दुनिया बस एक मुसाफिरखाना!<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><b><span style="font-size: small;"><span style="color: mediumblue;">मैं हूँ बस मैं, अरे यहाँ मुझमें कोई और नहीं है,<br />
आज का पल है ये, कोई और बीता दौर नहीं है,<br />
यूँ आसमां से ही टूट कर गिरते है,सितारें यहाँ,<br />
चाँद नहीं, बस यही फलसफा, कुछ और नहीं है,<br />
मत रो कि गर्दिशों में घिरे रहने से आएगी हिम्मत,<br />
बुरे वक्त में, इससे बड़ी उम्मीद कुछ और नहीं है,<br />
मत सोच, कि यहाँ रहना है तुझे ताउम्र बाबस्ता,<br />
दुनिया बस एक मुसाफिरखाना से बढ़कर कुछ और नहीं है ............<br />
---मन-वकील .... </span></span></b></div>Vivek Goelhttp://www.blogger.com/profile/13677348685852176478noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-726191905100364242.post-29558805176479862292012-01-08T15:32:00.002+05:302012-01-08T15:32:37.388+05:30ना जाने कहाँ, जाकर सो गया है भाग्य!<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><b><span style="font-size: small;"><span style="color: mediumblue;">जतन से जतन, हिम्मत से हिम्मत तक,<br />
राह की सब कठनाईयां,लांगने का हौसला,<br />
महीन डोर से बंधी हुई, मन में एक आस सी,<br />
पर ना जाने कहाँ, जाकर सो गया है भाग्य,<br />
वेदना से आहत हुई, चेतना भीतर ही भीतर,<br />
घुट घुट कर दम तोडती, पर होंठ सिये हुए,<br />
असफलता से भारी हुआ, पल पल अहसास,<br />
पर ना जाने कहाँ, जाकर सो गया है भाग्य,<br />
कर्मों का पुनः पुनः, हिसाब करती जिन्दगी,<br />
इस जन्म के थे, या फिर किये होंगे पूर्व में,<br />
सवालों से घिरा हुआ, मैं उदासीनता समेटे,<br />
पर ना जाने कहाँ, जाकर सो गया है भाग्य,<br />
===मन वकील</span></span></b></div>Vivek Goelhttp://www.blogger.com/profile/13677348685852176478noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-726191905100364242.post-72728234027653554982012-01-02T22:30:00.000+05:302012-01-02T22:30:02.728+05:30दीवारों पर लिखी इबारत ....<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><b><span style="font-size: small;"><span style="color: mediumblue;">दीवारों पर लिखी इबारत की तरह,<br />
जिन्दगी अब रोज़ पढ़ी जाती है मेरी,<br />
कई कई बार पोता गया है इस पर,<br />
चूना किसी और की यादों से गीला,<br />
ना जाने क्यों? उभर आती है बार बार,<br />
लिखी हुए इबारत ये, झांकती सी हुई,<br />
चंद छीटें जो कभी कभार आ गिरते,<br />
बेरुखी से चबाये किसी पान के इस पर,<br />
रंगत निखर आती इसमें दुखों की युहीं,<br />
अरमानों की बुझी काली स्याही से लिखी,<br />
आज भी बता देती ये मेरे भाग में बदा,<br />
पानी से मिटने की चाह भी ना जाने अब,<br />
चाहकर भी कही ना जाने कहाँ गम है,<br />
बस दिखती है तो ये मेरी जिन्दगी ऐसे,<br />
दीवारों पर लिखी इबारत की तरह युहीं ....<br />
==मन वकील </span></span></b></div>Vivek Goelhttp://www.blogger.com/profile/13677348685852176478noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-726191905100364242.post-16658907426115941732012-01-02T22:28:00.002+05:302012-01-02T22:28:59.436+05:30जब लेखनी हो गयी उदास<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><b><span style="font-size: small;"><span style="color: mediumblue;">जब लेखनी हो गयी उदास,<br />
अब शब्द कैसे आये पास ?<br />
भावों की नैया रहे डगमगा,<br />
मन के भीतर नहीं अहसास<br />
जब लेखनी हो गयी उदास,<br />
अब शब्द कैसे आये पास ?<br />
संदूक में छुपा कर रखा है,<br />
जो खेलता था कभी रास,<br />
अवशेष है जैसे कोई राख,<br />
ख़ामोशी लेती है मेरी सांस,<br />
जब लेखनी हो गयी उदास,<br />
अब शब्द कैसे आये पास ?<br />
कोनों में पड़े थे जो आंसू,<br />
निकल करे लेते है अड़ास,<br />
रोकने पर भी नहीं रुकते ये,<br />
दिखलाकर पीड़ा की खटास,<br />
जब लेखनी हो गयी उदास,<br />
अब शब्द कैसे आये पास ?<br />
===मन वकील </span></span></b></div>Vivek Goelhttp://www.blogger.com/profile/13677348685852176478noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-726191905100364242.post-66748053812245639432012-01-02T22:27:00.002+05:302012-01-02T22:27:34.150+05:30५ गज भर की सफ़ेद चादर<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><b><span style="font-size: medium;"><span style="font-size: small;"><span style="color: red;">रखाकर तू हौंसले अब, सीने में डालकर इरादों का फौलाद,<br />
दौर है कुछ ऐसा अब,जो आँखें दिखाती है अपनी ही औलाद,<br />
वक्त की पहचान कर अब, जेहन को दिमाग से ऐसे जोड़कर,<br />
कौन भौंक देगा खंज़र, तेरी पीठ में ऐसे ये झूठे नाते तोड़कर,<br />
राहें होगी अनेक पर संग होंगें उनपर मुसीबतों के कई पत्थर,<br />
चलना तो होगा युहीं इन्ही राहों पर, चाहे रोकर या फिर हसंकर,<br />
सोच भी बदलेगी,जब देखेगा तू बदलती दुनिया की अजब रंगत,<br />
अकेला बढ़ चलाचल जिन्दगी के काफिले में,न जोड़ कोई संगत,<br />
गैरों ओ अपनों के फर्क में, रहेगी एक महीन सी लकीर यहाँ वहाँ,<br />
ढूंढ़ले बस रोशनी डगर पर,खुशियाँ अब मिलती इस जहाँ में कहाँ,<br />
सफ़र पूरा होते ही निकल, पहन कर ५ गज भर की सफ़ेद चादर,<br />
लोग बस मिटटी में मिला देंगे,मिलता है बाद में मुरझाये फूलों से आदर ....<br />
==मन-वकील</span></span></span></b></div>Vivek Goelhttp://www.blogger.com/profile/13677348685852176478noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-726191905100364242.post-33786342151310464202011-11-30T00:26:00.000+05:302011-11-30T00:26:00.765+05:30कभी जो ऐसे अपने पांव देखा<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><b><span style="font-size: small;"><span style="color: mediumblue;">धरातल से उठाकर हमने, कभी जो ऐसे अपने पांव देखा,<br />
सरकती और सिमटती कभी उस धूप को होते छाँव देखा,<br />
उजालों से घिर घिर के आये, कभी स्याह अँधेरे ऐसे भी,<br />
साँसों को बिलखकर रोते, मौत से मिलते दबे पाँव देखा,<br />
धरातल से उठाकर हमने, कभी जो ऐसे अपने पांव देखा,<br />
उम्मीदों के घरोंदें होते है बस, कुछ रेत से भी कमज़ोर,<br />
आंसू मेरे बहा दे इन्हें ऐसे, टूटते इन्हें बस सुबह शाम देखा,<br />
धरातल से उठाकर हमने, कभी जो ऐसे अपने पांव देखा,<br />
जहाँ ढूंढते रहते है हम, उनके पैरों के वो गहरे निशान,<br />
उस दलदल को सूखते हुए,बदलते दरारों के दरमियाँ देखा,<br />
धरातल से उठाकर हमने, कभी जो ऐसे अपने पांव देखा,<br />
कभी तो पूछ मुझसे यूँ तू,मेरे ऐसे बिखरने का वो आलम,<br />
क्या बीती मुझ पर जब, पड़ते उलटे जिन्दगी के दाँव देखा,<br />
धरातल से उठाकर हमने, कभी जो ऐसे अपने पांव देखा, <br />
</span></span></b></div>Vivek Goelhttp://www.blogger.com/profile/13677348685852176478noreply@blogger.com0