Sunday, June 17, 2012

होड़

आज चोरों डकैतों में अपना सिरमौर,
चुनने के लिए जबरदस्त होड़ पड़ी है,
तभी संसद के कैंटीन वाला कहता है,
आजकल संसद में बेसिज़न भीड़ बढ़ी है,
जो बनाए रहते थे कभी अपने अपने दल,
अपने मुद्दे की आड़ में करते थे हलचल,
कल तक जो बकते इक दूजे को गालियाँ,
अब गलबहियां डाल पीटते वो तालियाँ,
उन दलबदलुओं में जुड़ने की चाह बढ़ी है,
आज चोरों डकैतों में अपना सिरमौर,
चुनने के लिए जबरदस्त होड़ पड़ी है,
सब के सब चाहते बस इक रबड़ की मोहर,
जो बस अंगूठा टेकें, बने ना उनका शौहर,
जो उनके भेजे विधेयकों पर उठाए ना सवाल,
कौन कहाँ गवर्नर बने, रखें ना इसका ख्याल,
बस ऐसे एक जमुरें को जमुरियत सौपने की पड़ी है,
आज चोरों डकैतों में अपना सिरमौर,
चुनने के लिए जबरदस्त होड़ पड़ी है,
==मन वकील