Sunday, January 8, 2012

ना जाने कहाँ, जाकर सो गया है भाग्य!

जतन से जतन, हिम्मत से हिम्मत तक,
राह की सब कठनाईयां,लांगने का हौसला,
महीन डोर से बंधी हुई, मन में एक आस सी,
पर ना जाने कहाँ, जाकर सो गया है भाग्य,
वेदना से आहत हुई, चेतना भीतर ही भीतर,
घुट घुट कर दम तोडती, पर होंठ सिये हुए,
असफलता से भारी हुआ, पल पल अहसास,
पर ना जाने कहाँ, जाकर सो गया है भाग्य,
कर्मों का पुनः पुनः, हिसाब करती जिन्दगी,
इस जन्म के थे, या फिर किये होंगे पूर्व में,
सवालों से घिरा हुआ, मैं उदासीनता समेटे,
पर ना जाने कहाँ, जाकर सो गया है भाग्य,
===मन वकील