Friday, October 26, 2012

क्यों मर गया अब मेरा देश??

जाकर समन्दर के किनारों से कह दो,
गिरते झरनों के सफ़ेद धारों से कह दो,
कह दो जाकर बहती नदियों के जल से,
जोर से कहो जाकर हवा की हलचल से,
ऊँचे पहाड़ों में जाकर कर दो तुम ऐलान,
जरा चीखों ऐसे, जो सुन ले बहरे मकान,
कुदरत के हर जर्रे में फैलाओ यह खबर,
अब इस मुल्क में बेईमान हुआ हर बशर,
खजानों में करे क्योकर हम अब पहरेदारी,
लूटमारी करती फिरे अब सरकार हमारी,
बाशिंदों के मुहँ पर जड़े अब सख्त से ताले,
गरीबी रहे हर जगह रोती,छीन गये निवाले,
बेरोज़गारी पर अब चढ़े जाए रंग सिफारिश,
अब कहाँ बरसती है मेरे खेतों पर वो बारिश,
मैं गर खोलता जुबाँ, तो बनते पुलिसिया केस,
मैं बैठा रोता हूँ, क्यों मर गया अब मेरा देश ..........
==मन वकील

मेरा गाँव!

धरातल से ऊपर मेरे पाँव है,
कहीं छुप गया वो मेरा गाँव है,
कभी बादलों से घिरा रहता था,
कभी हवाओं का जोर सहता था,
पेड़ों की डालियों पर थे पत्ते हरे,
खेत थे खलियान भी थे सब भरे,
लोगों की महफ़िल थी शोर था,
खुश थे सब ना कोई कमज़ोर था,
वजह थी वहीँ न बेवजह था कोई,
रातें थी चांदनी पर,रहती वो सोई,
कहाँ सब जा बसे अब कहाँ गाँव है
कहीं छुप गया वो मेरा गाँव है,
राह थी चलती, जो लोग चलते,
वहीँ जानवर दोस्तों से थे पलते,
सब नज़दीक था मंदिर भी वहीँ,
पाठशाला की घंटी से हिलती जमीं,
बच्चे थे संग थे खेल कंचे और हाकी,
सभी एक से एक, ना कमी थी बाकी,
बस एक दिन कोई धुंआ आ गया,
मेरे गाँव के सब खेत ही वो खा गया,
अब बस दौड़ते है मजबूरी के पाँव
कहीं गुम हो गया वो मेरा गाँव,
==मन-वकील

कितने रावण ?

कितने रावण मारोगे अब तुम राम?
हर वर्ष खड़े हो जाते शीश उठाकर,
यहाँ वहाँ, हर स्थान पर पुनः पुनः,
कभी रूप धरते वो भ्रष्टाचार बनकर
कभी अत्याचार किसी निरीह पर,
कहीं बिलखते बच्चे की भूख बनकर,
अक्सर महंगाई का विकराल रूप धर,
कहीं धर्मांध आतंक के चोला पहनकर,
कभी किसी महिला के कातिल बनकर,
कभी कसाब तो कभी दौउद बन बनकर
कभी मिलते राहों में कोई नेता बनकर,
अब नहीं दशानन वो है वो शतकानन,
मिलते है वो बनकर अब तो सह्स्त्रानन,
बस कलियुग में ही होते ऐसे अधर्मी काम,
कितने रावण मारोगे अब तुम राम?
==मन वकील