Saturday, September 10, 2011

इत्मीनान

अरे कभी खुद-फरोश हम नहीं,
रहता है हमें इस बात का गुमान,
वफ़ा ही है सिर्फ हमारी फितरत,
बसते है भीतर इसके ही निशान ,
ये माना,छूट जायेगा बहुत कुछ ,
बीते कल को लेकर, नहीं परेशान ,
खुशियाँ आकर छूकर चली जाती ,
मिजाज़ पर रखते,अक्सर लगाम,
काबू रहे दिलोदिमाग की तेज़ी पर,
मन-वकील है देते सब्र का इम्तिहान
यारो के यार हैं हम, सिर्फ इसी बात का
हमे है तहे दिल से इत्मीनान ! ....
===मन-वकील

कालेज के दिन

कालेज के उन दिनों में,
क्या दिल की हालत होती,
हम मदहोश हुए रहते,
और आँखों में शरारत होती,
नोटबुक पे लिखते थे, हम
सबक,जब संग कलम होती,
ब्लैकबोर्ड पर दिखती अक्सर,
तस्वीर, जो दिल में बसी होती,
नोट बुक पर तो उतरते थे सीधे,
अक्षर, पर याद में उनके बदल जाते,
क्या कहें हम अब दोस्तों वो दिन,
जब आखिरी पन्नों में उनका नाम दोहराते...
====मन-वकील

Monday, September 5, 2011

यारों के लिए!

मेरे नसीब में चाहे हो कांटे, पर मेरे यारों को,
फूलों की महफ़िल मस्तानी दे मेरे मौला,
भूख के नश्तर उन्हें चुभ ना पाए मेरे यारों को,
दावतें रंगी दस्तरखाने जमानी दे मेरे मौला,
झूठ फरेब के जाल अब छू ना पायें मेरे यारों के,
दिल में सच के रंग आसमानी दे मेरे मौला,
तरस गयी अब आँखे तेरे दीद को मेरे यारों की,
पत्थर से निकल दरस सुल्तानी दे मेरे मौला.......


==Man -Vakil

आत्म निरिक्षण !

कभी कभी लिखता हूँ मैं,
युहीं अपने मन की बात,

कभी बिछा लेता हूँ युहीं, मैं,
अनकहे किस्सों की बिसात,
कभी सजा लेता हूँ ऐसे, यारों

उन रंगीन तस्वीरों की बरात,
कभी नमकीन देसी का मज़ा,
कभी मीठी बातों की सौगात,
क्या हूँ ? और क्या बनूँगा मैं,
इस बात की नहीं परवाह मुझे,
कुछ सरल सी है मेरी जिन्दगी ,
जो दौड़ती है पथरीली राह पर,
चिंता कभी नहीं मुझे, भविष्य की ,
पर खा गया मुझे मेरा निवर्तमान,
खोये भूत में खोकर, अपना आज,
मैं रहता आया उदासी की छाँव में,
तरलता मन की उमंगों में रही बसी,
और मैं बहता रहा दूसरों की राहों में,
प्रेम कैसे करूँ मैं, ऐसे मीरा बनकर,
जो मिलते नहीं जो कृष्ण बांहों में,
सदैव रहा हूँ प्यासा एक चातक सा,
ढूंढ़ता हूँ मैं जिन्दगी, खोयी राहों में,



==Man-Vakil