Sunday, July 10, 2011

ख्वाब कुछ सुनहेरे....

मेरी पलकों के कोनों में छुपे है ख्वाब कुछ सुनहेरे,
कभी हो जाते है कुछ धुंधले, कभी बस जाते अँधेरे,
कभी बह जाते है वो मेरी पलकों से संग आंसुओं के,
कभी बस पड़े रहते युहीं, रहकर नम से, ठहरे ठहरे,
मेरी पलकों के कोनों में छुपे है ख्वाब कुछ सुनहेरे,
कभी चेहरे नज़र आते है उनमे कभी परछाई से गहरे,
कभी एक ढलती रात से होते और कभी उजले से सवेरे,
कभी बस टूटने को होते, कभी बस आगोश में रहते मेरे,
मेरी पलकों के कोनों में छुपे है ख्वाब कुछ सुनहेरे,
कहीं तो शोर करते है ये, कभी ख़ामोशी से करते बसेरे,
कभी पुकारते है मुझकों, दिखाकर यादों के फूल वो तेरे,
कभी मासूम से होते, कभी कुरेदते ये, वो जख्म भी मेरे,
मेरी पलकों के कोनों में छुपे है ख्वाब कुछ सुनहेरे, .....
====मन-वकील

जोड़ आने जाने वालों का....

वो बैठा रहता है अब सड़कों पर, बिना रफ़्तार के यारों,
सुनाई भी नहीं देता उसे अब शोर आने जाने वालों का,
बहरा तो नहीं था वो पर अब ना जाने क्यूँ नहीं सुनता,
आँखें पथरा सी गई है देख हजूम आने जाने वालों का,
कोई तो शह सी होगी, जो रखे है उसे बांधें इन सड़कों से,
वर्ना कब लगता था उसे भला, रेला आने जाने वालों का
तकदीरों के फैसले उसे, ना जाने कहाँ से कहाँ ले जाए,
बस अब बनके रह गया वो,इक जोड़ आने जाने वालों का ....
---मन-वकील