मेरी पलकों के कोनों में छुपे है ख्वाब कुछ सुनहेरे,
कभी हो जाते है कुछ धुंधले, कभी बस जाते अँधेरे,
कभी बह जाते है वो मेरी पलकों से संग आंसुओं के,
कभी बस पड़े रहते युहीं, रहकर नम से, ठहरे ठहरे,
मेरी पलकों के कोनों में छुपे है ख्वाब कुछ सुनहेरे,
कभी चेहरे नज़र आते है उनमे कभी परछाई से गहरे,
कभी एक ढलती रात से होते और कभी उजले से सवेरे,
कभी बस टूटने को होते, कभी बस आगोश में रहते मेरे,
मेरी पलकों के कोनों में छुपे है ख्वाब कुछ सुनहेरे,
कहीं तो शोर करते है ये, कभी ख़ामोशी से करते बसेरे,
कभी पुकारते है मुझकों, दिखाकर यादों के फूल वो तेरे,
कभी मासूम से होते, कभी कुरेदते ये, वो जख्म भी मेरे,
मेरी पलकों के कोनों में छुपे है ख्वाब कुछ सुनहेरे, .....
====मन-वकील