Friday, February 10, 2012

वक्त की पहचान कर

रखाकर तू हौंसले अब, सीने में डालकर इरादों का फौलाद,
दौर है कुछ ऐसा अब,जो आँखें दिखाती है अपनी ही औलाद,
वक्त की पहचान कर अब, जेहन को दिमाग से ऐसे जोड़कर,
कौन भौंक देगा खंज़र, तेरी पीठ में ऐसे ये झूठे नाते तोड़कर,
राहें होगी अनेक पर संग होंगें उनपर मुसीबतों के कई पत्थर,
चलना तो होगा युहीं इन्ही राहों पर, चाहे रोकर या फिर हसंकर,
सोच भी बदलेगी,जब देखेगा तू बदलती दुनिया की अजब रंगत,
अकेला बढ़ चलाचल जिन्दगी के काफिले में,न जोड़ कोई संगत,
गैरों ओ अपनों के फर्क में, रहेगी एक महीन सी लकीर यहाँ वहाँ,
ढूंढ़ले बस रोशनी डगर पर,खुशियाँ अब मिलती इस जहाँ में कहाँ,
सफ़र पूरा होते ही निकल, पहन कर ५ गज भर की सफ़ेद चादर,
लोग बस मिटटी में मिला देंगे,मिलता है बाद में मुरझाये फूलों से आदर ....
==मन-वकील