Saturday, June 18, 2011

प्यार अभी बाक़ी है॥

Friends Another wonderful poet has joined our mission..Mr Tigerlove...Here's his contribution..

गुलशन का इन्तज़ार अभी बाक़ी है॥
पतझङ चली गई बहार अभी बाक़ी है॥

खेल चुके है इन्सान खून की होली

गिद्धोँ का त्योहार अभी बाक़ी है॥

फिर लुटने की तमन्ना है शायद

लुटेरोँ पर ऐतबार अभी बाक़ी है॥

दिखा दिया तलवार का जौहर तुने

मेरी क़लम का वार अभी बाक़ी है॥

बोएँ खूब "
शेर" लोग नफरत की फसल
पर मेरे खेत मेँ प्यार अभी बाक़ी है॥

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शेर-ऐ-आशिक
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Thursday, June 16, 2011

मेरा वर्तमान

====मेरा वर्तमान
वर्तमान की चिंता करता देखा मैंने भूतकाल,
और भविष्य के पीछे दौड़ता रहता है वर्तमान,
अवशेषों में खुशियाँ ढूंढें, भुलाकर आज की चाल,
इन रेत के घरौंदों में ढह कर रह जाता है वर्तमान,
बीते सपने, बीते हुए पल,धीमी सी हुई वो ताल,
तीव्रता को थामे हाथों में, दौड़ता रहता है वर्तमान,
आने वाले कल की चिंता, बीते कल का करे मलाल,
समक्ष पड़े दायित्व-क्रम को भूलता रहता है वर्तमान,
मेरे बंधू या मेरे शत्रु , सोच सोच बस यही होता बेहाल,
आवसादों को मन के भीतर ढोता रहता है वर्तमान,
======मन-वकील

Tuesday, June 14, 2011

कैसी है यह जिन्दगी-

===कैसी है यह जिन्दगी---
कभी खट्टी है, तो कभी मीठी होती है यह जिन्दगी,
कभी बच्चे की किलकारी सी होती है यह जिन्दगी,
और कभी पुरानी बुढ़िया सी रोती है यह जिन्दगी,
कभी पतझड़ सी, कभी बसंत सी होती है यह जिन्दगी,
कभी जागी तो कभी कुम्भकर्ण सी सोती है यह जिन्दगी,
कभी हकीकत, तो कभी ख्वाबों को पिरोती है यह जिन्दगी,
कभी खेलती रहती, कभी थकी सी होती है यह जिन्दगी,
और कभी अनगिनत यादों के बोझ को भी ढोती है यह जिन्दगी
कभी मेरे करीब है, कभी मुझसे दूर होती है यह जिन्दगी,
कभी तारीखों के पन्नों में दबी इतिहास होती है यह जिन्दगी,
कभी मासूम सी, और कभी चालबाज़ सी होती है यह जिन्दगी,
कभी मन-वकील के मन सी, अशांत भटकी होती है यह जिन्दगी,
कभी तारों की छाँव, तो कभी सूरज की तपिश होती है यह जिन्दगी,
और कभी भीड़ में बैठकर भी, अकेली सी रोती है यह जिन्दगी,
कभी हाथों की लकीरों में, ना जाने कहाँ भटकी होती है यह जिन्दगी,
कभी तकरीरों को सुनती, कभी लतीफों की तरह होती है यह जिन्दगी,
कभी विधवा का क्रंदन,कभी किसी देव का वंदन होती है यह जिन्दगी,
कभी आमों की बयार, कभी साँपों से घिरा चन्दन होती है यह जिन्दगी,
कभी हास-परिहास, और कभी युगों से उदास होती है यह जिन्दगी,
कभी रूठी प्रीतम की तरह, कभी प्रेयसी से पास होती है यह जिन्दगी,
अज़ब रूप धरे रहती , एक अनबूझा सवाल सी होती है यह जिन्दगी,
कभी उलझन बन डूबी रहती, कभी बेमिसाल सी होती है यह जिन्दगी,
मन-वकील अब तो निकल पड़ किसी राह पर,हाथों में लेकर यह जिन्दगी,
बीत जायेगी बिन कहे, और कभी पल-पल सी रुक ना जाए यह जिन्दगी.......
======मन-वकील

कुछ खास शायरी...

अरे जिन्दगी दो दिशाओं में चलती है अब मेरी,
कभी रोशनी तो कही रात ढलती है अब मेरी,
कौन जाएगा मन-वकील किस ओर?क्या खबर,
ये नाव दो धाराओं में फंस के चलती है अब मेरी,
ना ढूंढ़ अब मुझे किसी भी एक मुकाम पे, ऐ सनम,
अरे यह शाम भी दो जगहों पे कटती है अब मेरी,,,,
======मन-वकील 


सदा पैबंद बन कर ही जिया वो, मान बंदगी,
बस सिलता रहा दूसरों की फटी हुई जिन्दगी,
यूँ तो वो था ढांपता, दूसरों के दीखते खुले गुनाह,
पर ना जाने क्यों वो लोग उस पे उठाते उँगलियाँ,
=======मन-वकील  


अब तो उसके टूटने की आवाज़ तक सुनाई नहीं देती,
चोट खाता वो हर-बार, पर कमबख्त दिखाई नहीं देती,
कभी तो झाँक-कर देखों ,उसकी उन खामोश आँखों में,
ऐसी कौन सी गम की परछाई है जो दिखाई नहीं देती.....
=======मन-वकील
 

वक्त का पहिया

वक्त का पहिया चला , साथ मैं भी चल पड़ा..
कुछ पल खुशियों के, कुछ पल गम के भरे,
मुठी में बंद थी जिन्दगी, फिर भी मैं चल पड़ा,
कुछ रूप थे सच्चे, और कुछ बहरूप मैंने धरे,
सोच थी कहीं और कही मन, और मैं चल पड़ा,
लोग मिलते रहे और कुछ राह ही में ही उतरे,
कभी चुभन, कभी सहज, सहन कर मैं चल पड़ा,
भाव आते रहे मन में, झूठे और कभी इतने खरे,
कोई रोके आगे बढ़कर, कोई पीछे, और मैं चल पड़ा ,
विकटता से भरा रहा सदा मैं, कई कई बार मन डरे,
वेदना-चेतना के मेल से युक्त, फिर भी मै चल पड़ा,
वक्त रूककर मुझसे पूछे, कब अंतिम पथ पर खड़े?
======मन-वकील