Saturday, May 21, 2011

चाय खाना!!

Another wonder ful Poem contributed by Sheena!!!

गम को कम करने की शायद
मुफीद जगह है चाय खाना,
जहाँ लेन-देन के मामले तय होते हैं,
बनती चाय महज बहाना.
चाय की चुस्की लेकर अटका कार्य ,
पुन: सरकने लगता है.
सुस्त पड़ा फ़ाइल फिर एक बार ,
टेबुल पर टहलने लगता है.
नफरत,वियोग की कडवाहट और मिठास
जब आपस में घुल मिल जाते हैं,
चुस्की की मधुर ध्वनि सुन
हम खुद में खो जाते हैं.
चाय कभी फैशन जरूर थी,
बन गयी आज हमारी जरूरत,
हाकिम हो या फिर चपरासी,
हर किसी को है पीने की आदत.
मुंह अँधेरे,बिछावन पर ही
अब चाय परोसी जाती है,
पतिव्रता भी पति देवता को,

चाय से ही रिझाती है.
आधुनिकता की पहचान यही है,
घर-घर में यह मीठा जहर,
इसके बिना हम असभ्य कहलाते,
और जीना सचमुच है दूभर.

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