जाकर समन्दर के किनारों से कह दो,
गिरते झरनों के सफ़ेद धारों से कह दो,
कह दो जाकर बहती नदियों के जल से,
जोर से कहो जाकर हवा की हलचल से,
ऊँचे पहाड़ों में जाकर कर दो तुम ऐलान,
जरा चीखों ऐसे, जो सुन ले बहरे मकान,
कुदरत के हर जर्रे में फैलाओ यह खबर,
अब इस मुल्क में बेईमान हुआ हर बशर,
खजानों में करे क्योकर हम अब पहरेदारी,
लूटमारी करती फिरे अब सरकार हमारी,
बाशिंदों के मुहँ पर जड़े अब सख्त से ताले,
गरीबी रहे हर जगह रोती,छीन गये निवाले,
बेरोज़गारी पर अब चढ़े जाए रंग सिफारिश,
अब कहाँ बरसती है मेरे खेतों पर वो बारिश,
मैं गर खोलता जुबाँ, तो बनते पुलिसिया केस,
मैं बैठा रोता हूँ, क्यों मर गया अब मेरा देश ..........
==मन वकील
गिरते झरनों के सफ़ेद धारों से कह दो,
कह दो जाकर बहती नदियों के जल से,
जोर से कहो जाकर हवा की हलचल से,
ऊँचे पहाड़ों में जाकर कर दो तुम ऐलान,
जरा चीखों ऐसे, जो सुन ले बहरे मकान,
कुदरत के हर जर्रे में फैलाओ यह खबर,
अब इस मुल्क में बेईमान हुआ हर बशर,
खजानों में करे क्योकर हम अब पहरेदारी,
लूटमारी करती फिरे अब सरकार हमारी,
बाशिंदों के मुहँ पर जड़े अब सख्त से ताले,
गरीबी रहे हर जगह रोती,छीन गये निवाले,
बेरोज़गारी पर अब चढ़े जाए रंग सिफारिश,
अब कहाँ बरसती है मेरे खेतों पर वो बारिश,
मैं गर खोलता जुबाँ, तो बनते पुलिसिया केस,
मैं बैठा रोता हूँ, क्यों मर गया अब मेरा देश ..........
==मन वकील