अब भ्रष्टाचारियों ने इसे कालिख से है संवारा
राहगीरों को लुटने वाले डाकू कहाँ हो गए गुम,
सांसद बन अब उन्हें सड़कों पे लूटना नहीं गंवारा,
जनता के पैसे से अब वो जनता को ही रौन्धतें,
देश को अब कौन कृष्ण आकर देगा सहारा,
शोर मत करों अब यहाँ नहीं होगी कोई क्रांति,
अब तो मौनव्रत करने पे लगती है १४४ की धारा,
सभी आसरे से दूर आज मेरा देश है बेसहारा
अब भ्रष्टाचारियों ने इसे कालिख से है संवारा
खेल संगठनों के पदों पर काबिज़ है बेशर्म बेखिलाड़ी,
कौन बनेगा यहाँ मिल्खा या ध्यानचंद दुबारा,
गुब्बारों के नाम पर उड़ा देते है जनता का धन,
बेशर्म ये बाबू घुमने चले जाते है लन्दन या बुखारा,
विकास शब्द अब रह गया है इक नारा बनकर,
ज्ञान और शिक्षा को अब आरक्षण ने है मारा
सभी आसरे से दूर आज मेरा देश है बेसहारा
अब भ्रष्टाचारियों ने इसे कालिख से है संवारा,
बांटकर खाते है धर्मं और जातियों में हमें, ये नेता,
चरित्र व् राज धर्म से नहीं होता अब इनका गुज़ारा ,
वोट की अब कीमत झुग्गियों में अब खूब है बंटती,
दारु हो या कम्बल, बटन दबवाते है कई-२ हजारा,
बहु बेटियों के नाम पर बंटती है खूब वजीफों के रकम,
राह चलते उन्हें लुटते, संग पुलिस लेती है चटखारा,
सभी आसरे से दूर आज मेरा देश है बेसहारा
अब भ्रष्टाचारियों ने इसे कालिख से है संवारा ...
==मन वकील
बहुत मर्माहत करने वाले मनोद्गार हैं |
ReplyDeleteपरन्तु यही कटु सत्य है एवं इस त्रासद परिस्थिति के उत्तरदायी भी हमीं हैं |
हम जिन वाह्य आक्रमणकारियों का चरणोदक सेवन कर जीवन-यापन करने वाले हुक्मरानों को इस अवस्था का उत्तरदायी मान रहें हैं - वह वास्तव में हमारा अज्ञान है क्योंकि वे तो स्वधर्म का पालन कर रहे हैं और हम निज धर्म को त्याग चुके हैं |
दुखद सच्चाई!
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