प्यारे मित्रों ऐसे यूँ मेरी तारीफ़ ना करना ,
अरे इन्सान हूँ एक, मेरी फितरत है डरना,
कभी बुरा हूँ मैं और तो कभी बहुत बुरा हूँ ...
आदत न हो जाये मेरी गिरगिट सा रंग बदलना ,
सच्चा ना था कभी, फिर भी सच है मन में,
शायद इस कारण भूल गया मैं सबसे झगड़ना,
लोभी होता कभी मैं तो खुद से डर कर ऐसे,
पाप के अंधे रस्तों पर आने लगा मुझे संभलना !
==Man-Vakil