इस जीवन का एक सार बना दो,
आज मुझे बलि पथ पर चला दो,
सत्य नहीं असत्य भरा इस घट में,
कोई कंकर मार इसे तोड़ गिरा दो,
रागों को बैरागी लेकर अब निकले,
बेसुरों से सब संगीत युहीं सजा दो,
कौवों को पहनाओं तमगे पुष्पहार,
कोयल को अब पत्थर मार भगा दो,
गिद्दों के संग खायो बैठ ये निरामिष,
ज्ञान हंसों को अब यहाँ से उड़ा दो,
रहने दो अब ये बालाएँ केवल नग्न,
इनके वस्त्र अब हरण कर बिखरा दो,
रोने दो अब भूखे मानव को बस ऐसे,
अन्नित खेतों पर अब कंक्रीट बिछा दो,
कहाँ क्रांति ला पाओगे अब तुम मित्रों,
बस मेरे ही विद्रोही स्वर को मिटा दो ....
===मन-वकील