गुलशन का इन्तज़ार अभी बाक़ी है॥
पतझङ चली गई बहार अभी बाक़ी है॥
खेल चुके है इन्सान खून की होली
गिद्धोँ का त्योहार अभी बाक़ी है॥
फिर लुटने की तमन्ना है शायद
लुटेरोँ पर ऐतबार अभी बाक़ी है॥
दिखा दिया तलवार का जौहर तुने
मेरी क़लम का वार अभी बाक़ी है॥
बोएँ खूब "शेर" लोग नफरत की फसल
पर मेरे खेत मेँ प्यार अभी बाक़ी है॥
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शेर-ऐ-आशिक
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आप ने अपने ब्लॉग पर मेरी रचनाये लिखे इस लिए धन्यवाद मित्र ...
ReplyDeleteTIGER LOVE
mitra asha karta hun aap isitarah se apne yogdaan dete rahenge....aur hum sab mil kar baal majduri pratha ko dur karenge..
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