आज फिर बैठा है गंगाजी के किनारे,
वो केवट, भरकर जल पात्र में अपने,
और राह पर नज़रें बिछाकर एकटक ,
प्रतीक्षा कर रहा है अपने प्रभु राम की ,
जो आज अभी तक नहीं आये तट पर,
कब धोएगा वो केवट, उनके चरण कमल,
और कब ग्रहण करेगा, वो चरणामृत, कब,
कब मुक्त होगा वो इस जन्म पुनर्जन्म के,
अंतहीन चक्र से, ब्रह्म विलीन होने के बाद,
वो स्वरुप,सांवला सलोना,दिव्य अलौकिक,
उसके प्रभु राम का, जो बना देगा फिर ,
उसके जीवन को भँव-सागर से कर पार,
अमृत्व से परिपूर्ण और वायु से हल्का,
जिनके दर्शन से उसने उस त्रेता युग में,
मुक्ति पायी थी, जन्म मरण के खेल से,
फिर ना जाने क्यों ? पुनः श्रापित होकर,
वो केवट, फिर आ पहुंचा, उसी गंगा तीरे ,
अपने हाथो में पात्र में भरा जल लेकर,
मुक्ति की वो गति को प्राप्त करने की आस,
उसे पल पल कर रही है व्याकुलता से युक्त,
और तन की थकान अब नेत्रों में दीखती है,
पर आज वो ऐसे ही खड़ा रहकर, ताकेगा,
उस क्षितिज की और, जहाँ से आयेंगे, वो,
उसके प्रभु राम, किसी व्योम पर सवार हो,
और मुक्ति होने का वरदान देंगे, उसे पुनः,
चरण-कमल धोकर उनके, वो केवट पुनः,
ग्रहण करेगा, चरणामृत और चरण धुरि,
आज सम्पूर्ण विश्व, भी तक रहा है राह,
अपने इष्ट देव की, जो मुक्तिप्रद करेंगे, हमें
यहाँ फैले भ्रष्टाचार, अत्याचार व् व्याभिचार से ......
=======मन-वकील
वो केवट, भरकर जल पात्र में अपने,
और राह पर नज़रें बिछाकर एकटक ,
प्रतीक्षा कर रहा है अपने प्रभु राम की ,
जो आज अभी तक नहीं आये तट पर,
कब धोएगा वो केवट, उनके चरण कमल,
और कब ग्रहण करेगा, वो चरणामृत, कब,
कब मुक्त होगा वो इस जन्म पुनर्जन्म के,
अंतहीन चक्र से, ब्रह्म विलीन होने के बाद,
वो स्वरुप,सांवला सलोना,दिव्य अलौकिक,
उसके प्रभु राम का, जो बना देगा फिर ,
उसके जीवन को भँव-सागर से कर पार,
अमृत्व से परिपूर्ण और वायु से हल्का,
जिनके दर्शन से उसने उस त्रेता युग में,
मुक्ति पायी थी, जन्म मरण के खेल से,
फिर ना जाने क्यों ? पुनः श्रापित होकर,
वो केवट, फिर आ पहुंचा, उसी गंगा तीरे ,
अपने हाथो में पात्र में भरा जल लेकर,
मुक्ति की वो गति को प्राप्त करने की आस,
उसे पल पल कर रही है व्याकुलता से युक्त,
और तन की थकान अब नेत्रों में दीखती है,
पर आज वो ऐसे ही खड़ा रहकर, ताकेगा,
उस क्षितिज की और, जहाँ से आयेंगे, वो,
उसके प्रभु राम, किसी व्योम पर सवार हो,
और मुक्ति होने का वरदान देंगे, उसे पुनः,
चरण-कमल धोकर उनके, वो केवट पुनः,
ग्रहण करेगा, चरणामृत और चरण धुरि,
आज सम्पूर्ण विश्व, भी तक रहा है राह,
अपने इष्ट देव की, जो मुक्तिप्रद करेंगे, हमें
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=======मन-वकील
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