चल जा उस टेबल पे कपड़ा मार जल्दी,
वो भागता उस टेबल की और तेजी से ,
और ये गालियाँ अब उसकी किस्मत है,
उस टेबल के आसपास कुर्सियों पे बैठे,
वो भद्र-पुरुष और नारियां, न जाने कैसे,
अपना वार्तालाप बीच में छोड़ अचानक,
छोटू को देख, नाक मुहं ऐसे सिकोड़ते ,
जैसे किसी कूड़े के ढेर पर हो वो बैठे,
उसके सफाई वाले कपडे से आती दुर्गन्ध,
उन्हें उस छोटू के भीतर से आती हुई लगती,
छोटू के वो छोटे हाथ एकाएक, तेज़ तेज़ ,
उनकी टेबल पर छपी चिखट को मिटाते,
और उधर उसका वो बचपन भी धीरे से ,
मिटता जाता, चुपचाप, बिना किसी शोर के,
और वो भद्र मानुस और मेमसाब, देख कर सब,
ऐसे अनजान से बने रहते, मूर्ति के जैसे, जड़वत,
जैसे उनके अपने आँगन में बालावस्था न हो,
और फिर वो भद्र पुरुष, प्रकट करते अपने चरित्र,
चीख कर कहते , जैसे वो हिमालय पर हो चढ़े ,
अबे छोटू , जा जल्दी से दो स्पेशल चाय ला,
और हाँ, साले उँगलियाँ गिलास में मत डालियो,
जैसे छोटू इन भद्र मानुस का कोई गुलाम हो,
और छोटू के कदम मुड जाते, भट्टी की ओर,
जैसे वो चाय लेने नहीं, खुद को उस भट्टी में ,
झोंकने जा रहा हो, बदकिस्मती से बचने के लिए,
रोज़ रोज़ की गालियाँ और बोनस में पड़ती लातें,
और कभी कभार, आने वाले ग्राहकों के थप्पड़,
उसने भुला दिया है इन सब के बीच, सहते हुए,
अपना वो बचपन, जो उसे खिलाता और खेलाता,
कभी अपने बापू के कन्धों पर सवारी करवाता,
और माँ के हाथों से लाड से दाल भात न्योत्वाता,
परन्तु बापू के गुजरने के बाद , परिवार का बोझ,
नन्ही नन्ही बहनों की फटी हुई मैली फ्रान्कें,
और माँ के हाथों में आ चुकी वो कुदाल और टोकरी,
कहाँ लेकर आ गयी है , इस छोटे से छोटू को ,
उसके बचपन से कोसो दूर, इस चाय की दुकान पर,
जहाँ पेट में रोटी से पहले, गालियाँ और लातें मिलती,
उसके बचपन के बचे हुए अंश को मिटाने के लिए,
जो भीतर तो छुपा है , पर हमेशा लालायित रहता,
उसके बाहर आने को किसी रोज़, मरते हुए भी ............
===========मन-वकील
हृदय को झकझोर देने वाली पंक्तियाँ हैं .....
ReplyDeleteमन करुणामय हो गया..........
और नयन तो बादल बन गए ...
धन्यवाद /
मित्र धन्यवाद् आपका यहाँ पधारने के लिए....
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